वर्ष : 6 | अंक:5 |
जनवरी 2021 |
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कुलपति उवाच |
03 |
विश्व-परिवार की दिशा में
के.एम. मुनशी |
संदेश |
04 |
नयी चुनौती, नयी आशा
सुरेंद्रलाल जी. मेहता |
05 |
नयी सफलताओं की उम्मीद
होमी दस्तुर |
पहली सीढ़ी |
11 |
बुरे वक्तों की कविता
कुंवर नारायण |
धारावाहिक उपन्यास |
178 |
ढलती सांझ का सूरज
मधु कांकरिया
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शब्द-सम्पदा |
136 |
साल-दर-साल, बारम्बार
अजित वडनेरकर
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आलेख |
58 |
सभ्यता का यांत्रिक मन
नर्मदा प्रसाद उपाध्याय
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172 |
नैतिकता के अद्वितीय कवि थे मंगलेश डबराल
हरि मृदुल
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कविताएं |
176 |
मंगलेश डबराल की कविताएं
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आवरण-कथा |
12 |
मशीन होती मनुष्यता
सम्पादकीय
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14 |
जानवर से इंसान और इंसान से रोबो...
जितेंद्र भाटिया
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20 |
विकल्पों के चक्रव्यूह में फंसा...
रामशरण जोशी
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26 |
आधुनिक विज्ञान और वर्चस्व...
अच्युतानंद मिश्र
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34 |
लेखन की टेक्नोलॉजी और...
रमेश उपाध्याय
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44 |
पुस्तकें तो हमेशा हमारे साथ होंगी
विजय कुमार
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51 |
मशीन, ज्ञान और स्मृति : अम्बर्तो इको से बातचीत
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61 |
संवेदनहीनता का एक नाम...
लाल बहादुर वर्मा
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67 |
तकनीकी विकास और संवेदनाओं...
चंद्रकुमार
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72 |
मानव होने का दर्द
अज्ञेय
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78 |
मानवाधिकार और तकनीकी
नंदकिशोर आचार्य
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82 |
साहित्य कला में `कल' की..
अनूप सेठी
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टिप्पणी |
88 |
सच होता दुस्वप्न
सुमनिका सेठी |
117 |
दुश्मन मेमना अर्थात रचना मनुष्य होने की
विजय कुमार |
142 |
सबसे खतरनाक है हमारी संवेदनाओं का मर जाना
मनीष वैद्य
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151 |
मरती हुई संवेदनाओं को बचाए रखने का प्रयास
सुनील केशव देवधर
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161 |
विवेक पर पसरता अंधेरा
गंगा शरण
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194 |
किताबें
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कथा |
91 |
अगले अंधेरे तक
जितेंद्र भाटिया
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120 |
दुश्मन मेमना
ओमा शर्मा
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144 |
दादी और रिमोट
सूर्यबाला
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153 |
फिर वापसी…
राजेंद्र श्रीवास्तव
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163 |
जाल
ज्ञानप्रकाश विवेक
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समाचार |
196 |
भवन समाचार |
200 |
संस्कृति समाचार |
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आवरण चित्र
अशोक भौमिक
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