वर्ष : 6 | अंक:6 |
फ़रवरी 2021 |
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कुलपति उवाच |
03 |
एकता के लिए
के.एम. मुनशी |
अध्यक्षीय |
04 |
संस्कृति की परिभाषा
सुरेंद्रलाल जी. मेहता |
पहली सीढ़ी |
11 |
कामना
श्रीनरेश मेहता |
धारावाहिक-उपन्यास - 2 |
115 |
ढलती सांझ का सूरज
मधु कांकरिया
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व्यंग्य |
86 |
ईमानदारी
यज्ञ शर्मा
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शब्द-सम्पदा |
136 |
बुर्जुआ वर्ग का बुर्ज़
अजित वडनेरकर
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आलेख |
39 |
वसंत को छू लेना चाहूं!
विजय कुमार दुबे
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45 |
कैसे वसंत फूलना भूल गया!
डॉ. सत्येंद्र चतुर्वेदी
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59 |
बिछौना हरी घास का
प्रयाग शुक्ल
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62 |
उसे किताबें दो, किताबें दो!
गिरधर राठी
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66 |
पिछले जनम की यदि नहीं मनुहार थीं, तो कौन थीं तुम!
सत्यदेव त्रिपाठी
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80 |
शम्सुर्रहमान फारुकी की याद में
सलाम बिन रजाक
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83 |
अलविदा अब्बू
मेहर अफशां फारुकी
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93 |
'हो सकता है, हमारे पूर्वज हिंदुस्तानी रहे हों!'
त्रिलोक दीप
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98 |
फलों से लदे कद्दावर पेड़ को झुके हुए देखा है?
निर्मला डोसी
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110 |
'वो ग़ज़ल का लहज़ा नया-नया'
प्रतिभा नैथानी
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आवरण-कथा |
12 |
बना रहे वैविध्य हमारा
सम्पादकीय
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14 |
विविधता बची रहेगी तो बचेंगे हम
जितेंद्र भाटिया
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18 |
विविधता, यानी एक का अनेक में होना
शिवदयाल
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24 |
जब कि तुझ बिन नहीं कोई मौजूद...
विनोद बिहारी लाल
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32 |
सहिष्णुता का अल्गोरिद्म
कैलाश सत्यार्थी
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138 |
किताबें
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कथा |
49 |
आखिरी विकल्प
अरुणेंद्र नाथ वर्मा
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88 |
काठ की टेबल
बल्लभ डोभाल
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133 |
पगला
भगवती प्रसाद द्विवेदी
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कविताएं |
44 |
दो ग़ज़ल
रमेश यादव
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48 |
मन में गूंजे फाग
डॉ. विद्यारानी
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78 |
एक रेलगाड़ी है जो हमारे आने से पहले चली जाती है
अम्बिका दत्त
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समाचार |
140 |
भवन समाचार |
144 |
संस्कृति समाचार |